
कई बार सोचता हूँ , जिंदगी में दरवाजे होते हैं या हम बस यूं ही मान लेते हैं कि , दरवाजे बंद हैं । मुझे लगता है दिल के दरवाजे खुले हों तो कसी दरवाजे का कोई मतलब नहीं है , और बंद हैं दिल के दरवाजे तो आसमां में भी घर बनाने पड़ेंगे । परिंदों को उड़ने की इजाजत नहीं होगी ।
मैं खोलने निकला हूँ उन दरवाजों को कि , गुम गई हैं जिनके जज़्बात की चाभी , कहाँ हैं वो परिंदे कि जिनके दरख्त में दरवाजे नहीं होते , कि जिनके आस्मा आजादी के एहसास से भरे हुये हैं , कि जिनके दिल में दरवाजे नहीं हुआ करते ।
हर दरवाजे के पीछे , न जाने कितने दरवाजे छुपे हैं , जो हमारे मन में बसे हैं । जैसे ही एक दरवाजा खुला कि दूसरा नजर आता है और इस तरह खुलते जाते हैं , ढेरों किवाड़ जो हमने अपने ही विचारो के तले बंद कर रखे हैं , जैसे उम्र की कोई सीमा ही नहीं है , करते रहेंगे इंतजार सही वक्त आने का ! और चल देंगे हम अपनी बातें अपने ही सीने में दबाये ।
शायद नहीं , अब ऐसा नहीं होगा , खुल रहे हैं दिल के भीतर बंद दरवाजे , मेरी आवाज के साथ आपके भीतर , मुझे भरोसा है और आपको एहसास कि हमारे भीतर जो दीवारें हैं उनसे हो के गुजर जाने को हमने दरवाजे बनाए हैं । कि जिस दिन ये दरवाजे खुलेंगे वो दीवारें भी गिर जायेंगी जो अपनी ही धारणा से सदियो गुजर जाने के बाद भी हमने खड़ी कर रखी है ।
बात दरवाजे के खुलने तक ही नहीं , दीवार के गिर जाने की हकीकत तक जाती है , क्योंकि अनजाने ही हम सदियों से साथ चल रहे हैं । सिर्फ हम और आप नहीं यह पूरा का पूरा ब्रह्मांड हमारे साथ चल रहा है । बस हम अपने विचारों के ढेर सारे दरवाजे में कैद हैं और सापेक्षता के सिद्धांत के चलते यह चाल नहीं देख पाते ।
दरअसल दरवाजे हैं नहीं बस हमें खड़े दिखते हैं और हम काल्पनिक चाभी लिए फिरते हैं ऐसे ही बंद दरवाजे खोलने के लिए । जिस दिन हमने चाभी फेंक दी हमें अहसास हो जाएगा दरवाजे के न होने का , कि तब ओपेन स्पेस में हमारे विचारों का कहीं कोई घर नहीं होगा । थोड़ा मुश्किल तो होगा , बेघर हो कर जीना पर क्या करूँ मुझे बताना ही होगा कि यह घर जैसी चीज एक टेम्परेरी फेज है , क्योंकि विचारों का पंछी काल्पनिक रोक की अवधारणा को नहीं जनता नहीं समझता । उसे किसी भी धरातल से कसी भी ऊंचाई तक उड़ जाने में , वक्त नहीं लगता । उसकी उड़ान कोई रोक कहाँ पाया है ।
मैंने फेंक दी है आपके हाथों में पड़ी वो चाबी जो आपको किसी दरवाजे के ताले में लगानी थी , क्योंकि अब कहीं कोई दरवाजा नहीं है हमारे और आपकी उड़ान के दरम्यान ।
कि मैं तोड़ने निकला हूँ उन दरवाजों को जिन्हें आजतक कोई बारूद तोड़ नहीं पाया है ।
Officer & Writing of Books
We use cookies to analyze website traffic and optimize your website experience. By accepting our use of cookies, your data will be aggregated with all other user data.