हास्य व्यंग्य सटायर
हिन्दी अकादमी दिल्ली से प्रकाशित पुस्तक से
A Poetry form I have just Bigun to be
जश्न और ख़्वाब के बीच
कोई रिश्ता है क्या ?
हमने
ख़्वाबों का जश्न मनाते किसी को नहीं देखा
मगर
जश्न मनाने का ख़्वाब
हर कोई देखता है .
क्यों न हम
अपने
ख़्वाबों का जश्न मनाएँ
जिस से हमारे ख़्वाब
हक़ीक़त में बदल जाने को
बेताब हो जायें .
अपनी छोटी बड़ी कविताओं के जरिए मुरली मनोहर श्रीवास्तव सच्ची, सादगी भरी और ईमानदार जीवन की बार बार वकालत करते दिखाई देते हैं। वह बार बार मोहब्बत की बातें करते हैं, संग-साथ के मनोरथ भाव रचते हैं। मशीनी लाइफ के मारक प्रहार से बचने के लिए यह जरूरी भी है। शक और शुबहा को दूर करने के लिए असमंजस में बने रहने की बजाय वह स्नेहिल स्पर्श की जरूरत पर बल देते हैं। यानी वह निरंतर संवाद के आकांक्षी दिखाई देते हैं ताकि दूरियां कम हों और साहचर्य फलित हो। विकास की आंधी से वर्तमान को बचाने के लिए सुनहरे अतीत से प्रेरणा लेने से उन्हें गुरेज नहीं, बशर्ते उसमें बेहतरी की गुंजाइश हो। अच्छी भावनाओं से तैयार नए कविता संग्रह के लिए मुरली मनोहर श्रीवास्तव जी को बधाई।
भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
-रणविजय सिंह सत्यकेतु
इलाहाबाद
(साहित्यकार और वरिष्ठ पत्रकार )
"मानवता की ऊँचाई का जायजा लेने वाली ये कविताएँ कोमल कविमन की गहरी संवेदना की सघन अभिव्यक्तियाँ हैं। संग्रह में मैत्री, स्नेह और वात्सल्य जैसी मानवीय भावनाओं से परिपूरित अनेक कविताएँ हैं लेकिन ये वैसी मूल्यपरक कविताएँ नहीं हैं जिनमें जब तक दो-चार बार प्रेम-प्रेम या स्नेह-स्नेह शब्द न आए तब तक हम मान ही न पाएँ कि यह भी भला कोई रसयुक्त कविता है! फ़ेसबुक और तथाकथित नवीन जनसंचार माध्यमों के ज़माने में मुरली की कविताओं के अर्थ गूढ़ हैं। उतने ही गूढ़, जितने किसी कवि की ज़िन्दगी में होते हैं। संकोच, सार्थकता, कोमलता, विचारशीलता और भोक्ता के सत्य से युक्त इस कवि को ध्यान से पढ़े जाने की दरकार है। इस कविता संग्रह में तमाम कविताएँ हैं जो हमारी जड़ों, गुम होती चली जा रही हमारी विरासत, हमारी सोच और चिंतन की विसंगतियों की ओर इशारा करती हैं। ये कविताएँ संग्रह में सुसंगठित रूप से अलग-अलग क्रम में उपस्थित होती हैं लेकिन हमारे वर्तमान परिवेश और मानवता की मनोवैज्ञानिक पड़ताल करती हैं। ये सहज मानवीय गरिमा और अस्तित्व के लिए संघर्ष करती हुई कविताएँ हैं। यहाँ तमाम ऐसे देशज शब्द हैं, जिन्हें पढ़कर आनंद तो आता है लेकिन दुख भी होता है कि उन शब्दों को बड़ी चालाकी से अर्थविहीन और निरर्थक बनाया जा रहा है। अपनी भाषा के संबंध में यहाँ यह अहसास होता है कि किस तरह हम सब लोगों को एक खास भाषा और एक विशेष संस्कृति में रंगने की खतरनाक साजिशें जारी हैं। कुल मिलाकर यह एक सार्थक और पठनीय कविता संग्रह है क्योंकि यहाँ जीवन ही कविता बन गया है।"
प्रांजल धर ( प्रसिद्ध साहित्यकर )
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Sambhavna is an individual’s deep probing into his own psyche and his responses to various stimuli in his environment. Hence at one level it is personal and yet it’s brilliance lies in the universality of its appeal. The reader finds himself reflected in many of the poems like The Distance, The Idealistic Mask, Tears etc. I felt the powerful draw to the poems as I read them in Hindi first. Mr. Murli is a prolific writer no doubt, but more than that he’s is earnest and honest in his expressions. There is no guile in what he writes. The reader is not led through a labyrinth of linguistic conundrums to deceive him, instead the poets forthright style, endears him to the reader. Murli Ji chooses a wide variety of subjects as the poems will reveal but the presence of the Almighty, is clearly evident. A superior being, a driving force revealing to him the purpose of his life as the years go by, string the poems together. The title Possibility is unique in itself, for it’s like a fluid situation with no finality to it. And life is exactly so Fluid, it can be moulded, shaped bettered always. The poem “Truth of the DNA” reveals the poets anathema for material gain, vulgar display of wealth and the mindless race there of. He finds himself lost till his figurative death leads him back to the truth—- his DNA. This for me is his finest poem in this collection. Amrita Chatterji Ex-Faculty, English Literature St. Josephs College Allahabad
फीनिक्स - लघु उपन्यास
कहानियों में जिंदगी है मगर कभी कभी जिंदगी ही कहानी होती है
हकीकत भी एक दिन कहानी हो जाती है , यह जो किताबों में छपी कहानियाँ हैं ,
किसी वक्त की हकीकत हैं , जो आज मेरे कहानी हो चली हैं । आप भी इन कहानियों से रूबरू होते चलिये । यकीनन इनसे गुजरते हुये आप अपने भीतर न जाने दिल की किन किन गहराईयों में उतरते चले जाएँगे । खुद ब खुद खुलते जायेंगे जिंदगी के बंद किवाड़ ।
मुरली
कई बार सोचता हूँ , जिंदगी में दरवाजे होते हैं या हम बस यूं ही मान लेते हैं कि , दरवाजे बंद हैं । मुझे लगता है दिल के दरवाजे खुले हों तो कसी दरवाजे का कोई मतलब नहीं है , और बंद हैं दिल के दरवाजे तो आसमां में भी घर बनाने पड़ेंगे । परिंदों को उड़ने की इजाजत नहीं होगी ।
मैं खोलने निकला हूँ उन दरवाजों को कि , गुम गई हैं जिनके जज़्बात की चाभी , कहाँ हैं वो परिंदे कि जिनके दरख्त में दरवाजे नहीं होते , कि जिनके आस्मा आजादी के एहसास से भरे हुये हैं , कि जिनके दिल में दरवाजे नहीं हुआ करते ।
हर दरवाजे के पीछे , न जाने कितने दरवाजे छुपे हैं , जो हमारे मन में बसे हैं । जैसे ही एक दरवाजा खुला कि दूसरा नजर आता है और इस तरह खुलते जाते हैं , ढेरों किवाड़ जो हमने अपने ही विचारो के तले बंद कर रखे हैं , जैसे उम्र की कोई सीमा ही नहीं है , करते रहेंगे इंतजार सही वक्त आने का ! और चल देंगे हम अपनी बातें अपने ही सीने में दबाये ।
शायद नहीं , अब ऐसा नहीं होगा , खुल रहे हैं दिल के भीतर बंद दरवाजे , मेरी आवाज के साथ आपके भीतर , मुझे भरोसा है और आपको एहसास कि हमारे भीतर जो दीवारें हैं उनसे हो के गुजर जाने को हमने दरवाजे बनाए हैं । कि जिस दिन ये दरवाजे खुलेंगे वो दीवारें भी गिर जायेंगी जो अपनी ही धारणा से सदियो गुजर जाने के बाद भी हमने खड़ी कर रखी है ।
बात दरवाजे के खुलने तक ही नहीं , दीवार के गिर जाने की हकीकत तक जाती है , क्योंकि अनजाने ही हम सदियों से साथ चल रहे हैं । सिर्फ हम और आप नहीं यह पूरा का पूरा ब्रह्मांड हमारे साथ चल रहा है । बस हम अपने विचारों के ढेर सारे दरवाजे में कैद हैं और सापेक्षता के सिद्धांत के चलते यह चाल नहीं देख पाते ।
दरअसल दरवाजे हैं नहीं बस हमें खड़े दिखते हैं और हम काल्पनिक चाभी लिए फिरते हैं ऐसे ही बंद दरवाजे खोलने के लिए । जिस दिन हमने चाभी फेंक दी हमें अहसास हो जाएगा दरवाजे के न होने का , कि तब ओपेन स्पेस में हमारे विचारों का कहीं कोई घर नहीं होगा । थोड़ा मुश्किल तो होगा , बेघर हो कर जीना पर क्या करूँ मुझे बताना ही होगा कि यह घर जैसी चीज एक टेम्परेरी फेज है , क्योंकि विचारों का पंछी काल्पनिक रोक की अवधारणा को नहीं जनता नहीं समझता । उसे किसी भी धरातल से कसी भी ऊंचाई तक उड़ जाने में , वक्त नहीं लगता । उसकी उड़ान कोई रोक कहाँ पाया है ।
मैंने फेंक दी है आपके हाथों में पड़ी वो चाबी जो आपको किसी दरवाजे के ताले में लगानी थी , क्योंकि अब कहीं कोई दरवाजा नहीं है हमारे और आपकी उड़ान के दरम्यान ।
कि मैं तोड़ने निकला हूँ उन दरवाजों को जिन्हें आजतक कोई बारूद तोड़ नहीं पाया है ।
वह जो झूठी तसल्ली के लम्हे हैं
इतने हसीन क्यों होते हैं
कि
इंसान की जिंदगी
उन लम्हों में गुजर जाती है।
सिर्फ इश्क ही
जिंदगी की हकीकत नहीं होती
न जाने कितनी हकीकत
इस इश्क के साये में
दम तोड़ देती है
यह जो समंदर की लहरे हैं
जिंदगी की लहरों से बड़ी नहीं होतीं
बस फर्क इतना है ,
दिल में उठते हुए तूफ़ान
समंदर की तरह
शोर कहाँ करते हैं।
जश्ने बहारा की तमन्ना में जिए जाते हैं
उम्र और बहार के बीच
कोइ रास्ता तो होगा
जो तमन्ना को रुकने नहीं देता।
ये जिंदगी कौन सी
तेरे दामन में गुजर जानी थी
बेवजह
हकीकत और भ्रम के अहसास
टकराते चले गए ।
कौन कहता है
जीने की तमन्ना
धड़कनों में छुपी होती है
हम तो बस
तेरी धड़कनों के अहसास की
तमन्ना में जिए जाते हैं ।
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